ढूंढना और टूटना
ढूंढना और टूटना
हर रोज नई खुशी ढूंढने में जुट जाते हैं हम...
ढूंढते- ढूंढते खुद ही टूट जाते हैं हम....
जिंदगी है लड़ना तो पड़ेगा....
सफर में है चलना तो पड़ेगा....
साँसे चल रही है, तो जिंदा रहना ही पड़ेगा....
यहाँ कौन किसका साथ देता है....
खुद को खुद ही ढूँढना व्यर्थ है....
बेवजह जीते रहो अब, क्योंकि जीना का यही अर्थ है....
बेज़ार सी हो गए हैं लोग जिंदगी की तरह....
मुस्तैद बैठे हैं हम भी हर रिश्ता खोने के लिए...
हसरत नहीं है अब और कुछ नया पाने की....
टूटते जा रहे हैं जो रिश्ते भी थे...
खुद को आज़माने की कशमकश में...