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Meena Mallavarapu

Inspirational

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Meena Mallavarapu

Inspirational

डाल पर बैठा पंछी

डाल पर बैठा पंछी

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डाल पर बैठा पंछी न जाने किस सोच में-

दूर दूर तक नज़र न आती छोटी सी एक पाती

छोटी सी आस का बहुत बड़ा प्रतीक

जिसे देख हरी भरी हो जाए मन की बंजर भूमि

ज़िंदगी निकल गई रह गई टहनी बारीक

रिश्तों की ढेरों यादें याद आतीं, उसे सतातीं

वह वक्त आज भी मौजूद है उसकी सोच में।

थी बगिया हरी भरी, कलकल करती नदिया

हरियाली चारों ओर ,खुशहाल सभी

परिवार की नींव लगती थी पक्की इतनी

आया नहीं ख़याल कि ज़िंदगी के इरादे हैं कुछ और

कोशिश कर ले चाहे कोई कितनी

ज़िंदगी से पंगा लेना है नामुमकिन जानें सभी

उजड़ जाए लहलहाती,ख़ूबसूरत अपनी बगिया

ज़िंदगी के उसूल हैं अजीब- रिश्ते कहां निभाती

मगर क्यों फंसा देती हमें रिश्तों की बेड़ियों में

खुद को रखती बड़े छोटे झंझट - झमेलों से दूर

इन्सानों को कर देती मजबूर लाचार

कहां गए ,कहां गए , क्यों चले गए मुझसे दूर

सपनों के वह मंज़र,छोड़कर अंधेरी गलियों में

आसमानों की ओर नज़र, बस अब दुआ में उठाती

दुआ में उठें हाथ- न गिला न शिकवा,न ही शिकायत

ख़ुशियों की सौगात समेट कर, भर ले अपने आगोश में

आगे पीछे कुछ और नहीं, जितनी मिली वही इनायत।



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