दौर-ए-दुःख
दौर-ए-दुःख
बीता हुआ दौर-ए-जहांन
कब लौट के आता है
व्यर्थ पथिक आशा लिए
आँसू बहता है।
जितना शेष है उतनी रेस है
तू समेट ले जो अवशेष हैं
कल तो न्या सूरज निकलेगा
बस आज में ही द्वेष है
मूर्ख बन जन की नजर में
क्यों खुद को जलता है?
व्यर्थ पथिक आशा लिए
आँसू बहता है।
की असली गुनाह यूँ हैं
जो है तो,जुदा क्यूँ हैं?
कंधा मेरे सहारे का
मझधार हिला क्यों है?
कहते थे अपने सारे
साथ चलेंगे मिलके प्यारे
लालच के घाव में घुलके
मिट गए बन अंधियारे।
हाल बुरा देख वो जुगनू
पंख छुपाता है।
व्यर्थ पथिक आशा लिए
आँसू बहता है।
बीता हुआ दौर-ए-जहांन
कब लौट के आता है।
बता कब लौट के आता है?
भला कब लौट के आता है।
देख रही है सांझी नजर जो
थक के कहीं सो जायेंगी।
मग़र जो देखा आज कमाल
तो सदियों तक दोहरायेंगी।
तेरा कदम कदम से आगे
तुझसे चलके जायेगा
वरना मांझी बीच भवँर में
घिर के ही गिर जायेगा
जो ठान ले तो जान ले
अश्वन रूप फौलादी है
ये रंग जरा पहचान ले
ले रंग जरा पहचान ले।
अच्छी-भली काया को
काहे रोगी बनाता है
व्यर्थ पथिक आशा लिए
आँसू बहता है।
बीता हुआ दौर-ए-जहांन
कब लौट के आता है।
बता कब लौट के आता हैं?
भला कब लौट के आता हैं।
©महेश कुमार
