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Jalpa lalani

Abstract

5.0  

Jalpa lalani

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दाल-चावल

दाल-चावल

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दाल-चावल है मेरा पसंदीदा खाना

स्वादिष्ट फ़िर भी साधारण और सादा

हर रोज़ घर में है बनता।


उससे जुड़ी है मेरी कुछ यादें

इसमें शामिल है मेरी माँ की दुआएं

माँ देती थी उसमें प्यार का झोंका

मुझे बहुत पसंद आता था वो दाल तड़का।


भाती-भाती की दाल है बनती

कभी अकेली तो कभी पाँच मिलके पंचरत्न होती

कभी दाल मखनी तो, कभी दाल मोरादाबादी

दावत और सजी सी लगती जब साथ मे होती रोटी और सब्जी।


पेहले तो पड़ती है उबालनी, कुकर की सीटी मुझे बुलाती

जब तक गाढ़ी नहि बन जाती, वो मुझे दौड़ाती

सारे मसाले डालकर, बाद में उसे बघारती।


जब लगाती तड़का, चारो और खुश्बू फैल जाती

बिना तड़के के दाल लगती है फ़ीकी

और मज़ेदार लगती जब होती साथ मे नान या तंदूरी रोटी।


मुझे याद आती है बासमती चावल की वो महक

जो पकते हुए पूरे घर को है महकाती

दाल के साथ खिले-खिले

बासमती चावल का तो क्या कहना


झटपट है बन जाता, कभी नही बोर करता

बडे चाव से हर कोई खाता

साथ मे नींबू का आचार, जैसे सोने पे सुहागा।


मुझे सबसे ज़्यादा दाल-चावल ही पसंद आता

परिवार के साथ बैठ के खाने का मज़ा ही कुछ और होता।


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