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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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चंचलता

चंचलता

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मन की चंचलता थिरक रही है

शांति लेकिन सिसक रही है।


तीनों पहर की जुस्तजू रही

जिंदा हूं का एहसास जगाती रही। 


मुझे मेरे ही आसपास लाती रही

बेसबब उलझी रही थकी आंखें। 


बेबसी ठहरी दिखी होठों के आगे

हवाओं में जाने कितने आकार बने। 


बुदबुदाते होठों ने कितने नाम कहे

मन की चंचलता थिरकती रही

शांति लेकिन सिसकती रही ।


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