चलता चल राही
चलता चल राही
चलता चल राही चलता चल,
चलना है तेरी फितरत।
चलने के सिवा मन में,
तू रख ना कोई हसरत।।
चलती रहती धरा निरंतर,
चलती रहती है सरिता।
चलने का ही नाम जिंदगी,
यही कहती है कविता।।
पथ चाहे जैसा भी हो,
चलना है तेरा काम।
मिलेगी मंज़िल निश्चित ही,
साथ मिलेंगे राम।।
पथ लंबा हो यदि तुम्हारा
बैठ न जाना हार।
चलते रहना चलते रहना,
नाव लगेगी पार।।
पथ छोटा हो तब भी तुम,
करना नहीं विश्राम।
चलते रहना धीरे-धीरे,
मंज़िल तक अविराम।
चलता चल राही चलता चल,
पथ में चाहे हों शूल।
चलने का आनंद नहीं,
जब पथ में हों केवल फूल।