चला जा रहा था मैं
चला जा रहा था मैं
अंधेरी रात में
चीरता हुआ अंधेरे को
चला जा रहा था मैं
तारों की छांव में
विचित्र आवाजों के साथ में
डरते हुए ,पर चला जा रहा था मैं
रास्ता बड़ा सुनसान था
ऊपर जंगल नीचे श्मशान था
इस बात से बेफिक्र , बीच रास्ते में
चला जा रहा था मैं
न कोई मेरे साथ था
पर एक चीज जो मेरा हौसला बढ़ा रहा था
यही मेरा सहारा था , हिम्मत थी
और इसी के सहारे, चला जा रहा था मैं
दूर थी मंजिल अभी
पहुंच जाऊंगा वहां कभी
सफलता का जोश लेकर
चला जा रहा था मैं
कब सफलता मेरे कदम चूमेगी
कब खुशी मेरे चारों ओर झूमेगी
इन सवालों को मन में दबाए
चला जा रहा था मैं
समय का न ज्ञान था
अपनी हालत का न मुझे भान था
लक्ष्य पाने को बेताब था
इन सब बातों से दूर , चला जा रहा था मैं
चलता ही जा रहा था मैं.