चल उड़ चल
चल उड़ चल
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
कह रही है ख़्वाहिशें तू बादलों पर रख कदम
चल उड़ चल कही चल उड़ चल कही
सफर में
वो दिख रहे है पर्वत वो नीला सा आसमान
जहाँ दिखती है तेरी ही परछाईयाँ नदी के जल में
वो झीलों का शहर जहाँ करता है बसेरा मन
चल उड़ चल वही चल उड़ चल वही
सफर में
जो रास्तों में थक गया तेरा मन तो थोड़ी देर बैठ कर
पेड़ों की डाल पर फिर उड़ चल वही चल
उड़ चल कही चल उड़ चल कही
सफर में
जब दिल ना लगे कहीं तो ख्वाहिशों को बांध तू
अपनी कलम से तू पंखों को फैला कर उड़ान भर तू
अपनी कलम ख़्वाहिशों को पंख मिलेंगे उड़ने को
नये तरंग मिलेंगे तू उड़ान भर अपनी कलम से
जब रास्ते ना दिखे उड़ने को पंख ना मिले
तब उड़ान भर तू अपनी कलम से
जब बंद हो जाये रास्ते तेरे सारे के सारे
भर ले उड़ान तू अपनी कलम से
मन प्रसन्न होगा चित में उमंग होगा उड़
आएगा सारा जहान घूम मन उड़ आएगा
नयी उमंग लिए ख्वाबो में रंग लिए
चल उड़ चल चल उड़ चल कही
अपनी कलम से तू उड़ान भर
चल उड़ चल
सफर में