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NEERAJ SINGH

Abstract

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NEERAJ SINGH

Abstract

" चीख "

" चीख "

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बड़ी डरी सी रहती हूँ

जब घर से निकलती हूँ

महसूस होता है जैसे

निगाहें पीछा करती है,


कहीँ छिटाकशी

कहीं निगाहों में हवस

क्यों हमे चीज समझते हो

भद्दे वार करते हो,


मैं भी तुम जैसी हूँ

हमारी रचना एक सी है

शारीरिक रचना में

तुमसे थोड़ा भेद है,


मानव मातृत्व उद्धार है

जहां बाल अधिकार है

मध्य भाग कुछ भेदित है

तुमसे थोडा सा भिन्न है


जरा सी भिन्नता के कारण

तुम हैवान बन गये

मैं चीख़ती रही

और तुम नोचते रहे।


कैसे तुम बेटे किसी के

कैसे कहलाते भाई हो

मेरी अन्तर आत्मा

शरीर से ज्यादा चोटिल है


मैं क्षुब्ध हूँ

मैं स्तब्ध हूँ

नारी होने पर रुष्ट हूँ

लगता है मैं ही भ्रष्ट हूँ।





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