चिड़िया की उड़ान

चिड़िया की उड़ान

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प्रातः काल के शीत पवन में,

चिड़िया अपनी धुन में चहकती गाती है,

सूरज की पहली किरण से पहले,

वो अपने सफर में निकल जाती है।


दाना ढूँढती चिड़िया हर पल,

ना जाने कितने पंख फड़फड़ाती है,

मिलता जो भी दाना उसको,

चोंच में भरकर बच्चों को पहले खिलाती है।


आसान नही सफर चिड़िया का,

कई जंग से लड़ कर उसको जाना है,

धूप-छांव न देखे कभी भी,

कई मील उड़कर उसको, घर को वापस आना है।


उम्मीद है बच्चो भरी है माँ से,

रोज चोंच में दाना लाती है,

महफूज़ रखती है वो हर पल उनको,

फिर उन्हें आसमान में उड़ना भी सिखाती है।


हर पल दाने की चाह में चिड़िया,

अपने परो को सहलाती है,

जानती है वो परो की ताकत,

जो धरती-आसमान से उसे मिलाती है।


हर दिन की नई उम्मीद ने उसको,

आज उड़ने के काबिल बनाया है,

आ जाती है फिर वो अपने घर में,

जिसे तिनके तिनके से उसने सजाया है।


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