चेतन भव्यता
चेतन भव्यता
हिमाद्रि की भव्यता पर मैं भी मुग्ध हूँ,
उसका उन्नत गिरिशृंग गौरव की वस्तु है।
उसके तुषार खण्डों पर सूर्य की
भास्वर किरणें आकर खेलती हैं ।
इसमें सन्देह नहीं कि
वह भारत का किरीट है।
भयंकर से भयंकर तूफ़ान भी
उसे डिगा नहीं सकते।
मुझे स्वीकार है कि वह
उच्चता का वरदान है।
पर मुझे यह भी ज्ञात है कि
वह केवल पाषाण है।
और,
आज यदि उसके
शिलाखंड ढह भी जाएँ,
तो भी वह मौन है, स्थिर है।
पर मेरे अन्तर में नित्य चेतना का
निरन्तर प्रज्वलित प्रकाश है।
मेरे अन्दर नित्य ब्रह्म की
सत् चित् आनन्दमयी ज्योति है।
मुझे हिमाद्रि बनाने का प्रयत्न मत करो।
प्रभु की अनुपम रचना,
मैं मानव हूँ
मुझे मानव ही रहने दो।