चार कदम
चार कदम
ये पल दो पल आराम करने का नहीं
हर एक को दो चार क़दम ही जाना है।
यहां के सब पंछी रुखसत हो गए
मौसम ए बहार में बागबां वीराना है।
जिसे पाने की हसरत कभी थी हमारी
आज वो समय ख़्वाब है या तराना है।
चोट नई है लेकिन घाव पुराना है
आफताब बहुत जाना-पहचाना है।
सारी बस्ती चुप की धुंद में डूबी है
जिस ने लब खोले हैं वो दीवाना है।
होगा वही सफल मंजिल ए जिंदगी में
जिस ने विष के घूँट को अमृत जाना है।
