चांदनी सी रात
चांदनी सी रात
वो बिखेर देती है अपनी पंखुड़ियां उस चांदनी सी रात में,
मिट जाती है उन पलों की दूरियां जो थी शुरुआत में।
कह कर भी कुछ कह ना सकती
होता कुछ ऐसा एहसास भूल ना पाते हैं
दोनों उस चाँदनी सी रात।।
आ जाता है बनकर तारा
कुछ दिनों के बाद हंसते मुस्कुराते बीत जाती है,
वह चांदनी सी रात।।

