फ़्राड्
फ़्राड्
मत खो जाना उसकि बतो में,
मत खो जाना उसकि आदतों में
कह जाता है कुछ हद से ज्यादा
समझ कर आवश्यकताओं को,
घेर लेती है चिन्ताओ कि घड़ियाँ
आने लगती है घुटन
सोचकर उस घटना को
मत खो जाना उसकि बातों में,
मत खो जाना उसकि आदतों में
हो गया है पेसा उसका,
खो गया है भेजा उसका
ना समझेगा ओ तेरी भावनाओं
न समझेगा तेरी यात्नाओं को
हो गई है चलन दूसरी
बदल गया जमाना लोग
सुझती नहीं उसको भावनाएँ ,
सुझती नहीं तेरी चिन्ताआएँ।