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Shivam Rao

Abstract

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Shivam Rao

Abstract

चाहत नहीं हैं

चाहत नहीं हैं

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चाहत नही थी पर दिखना पड़ा

बदनामो की बस्ती में बिकना पड़ा

कहा था उसने फरेबी मुझे

लिखना नही था पर लिखना पड़ा।


उसको सताना न नीयत थी मेरी

अपना बनाना चाहत थी मेरी

जलते अंगारों को साथ रहा था

भुट्टे के जैसे सिकना पड़ा।


कहती है वो की मैं बेवफा था

एक नही मैं हर दफा था

वक़्त का तकाजा था ही कुछ ऐसा

वो कहती रही मुझे सुनना पड़ा।


आज भी बाते है याद जुबानी

नफरत की प्यारी सी प्रेम कहानी

दिल मे उम्मीदें आंखों में आँसू

सपनो में यादों को रखना पड़ा।


मेरी कहानी में गुमनाम होगी

नाम लिखूंगा वो बदनाम होगी

सम्मान उसका रखने के खातिर

खुद से ही मुझको लड़ना पड़ा।


वो शादीशुदा है और मैं अकेला

उसके लिए मैंने हर गम को झेला

गम उसके मेरे हर खुशियां हैं उसकी

कुछ ऐसा बंटवारा भी करना पड़ा।


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