अपना शहर छोड़ दिया है,
अपना शहर छोड़ दिया है,
अपना शहर छोड़ दिया है,
जहाँ गुरी घाट की लहरों का साथ था,
जबलपुर की गलियाँ, कहानियों से भरी,
उस हवा में खुशबू, छोटी सी परियाँ।
इंदौर का पोहा, वो खुशियों का चक्कर,
दही और सेव का मज़ा, सब याद है अब तक,
पर अब तो नई राहों पर कदम रखते हैं,
वो पुरानी यादें, दिल में बस रखते हैं।
छोड़ दिया है जहाँ की छतरीयों का साया,
वो रंग-बिरंगी बाजार, जहाँ दिल लगता था,
फिर भी उन यादों का जहाँ है सदा,
हर एक पल में छुपी है, अपनी कहानियाँ अब भी यहाँ।
नए शहरों की रोशनी, नए राहें समेट ली,
पर अपने शहर की याद, दिल से कभी नहीं जाती।
खुशियों का सफर, जहाँ भी जाए,
वो गुरी घाट, वो इंदौर का पोहा, कभी ना भूल पाए।
