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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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बूँद पानी में गिरे

बूँद पानी में गिरे

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बादल से झरी बूँद

पर्वत मैदान पर गिरी

सूख जायेगी

और

पानी में गिरी तो


विलीन हो जायेगी

मैं चाहता हूँ

बूँद

पानी में गिरे

जब वह गिरेगी


तो पानी काँपेगा

जैसे कोई बूढ़ा

काँपता है

अपने नवजात दौहित्र या पौत्र को

गोद में लेते


पानी में उठेंगे वर्तुल

भीतर से बाहर की ओर

पुरानी भूली बिसरी स्मृतियों के

पुनर्स्मरण की तरह

जब छूती है


बूँद उस जलगात को

वह उछलता है

हृदय की तरह

कुछ हर्ष अश्रु से

प्रकट होते दीखते हैं

और


आती है वह ध्वनि

जिसे सुना ही जा सकता है

कहा नहीं जा सकता।


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