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Rashi Saxena

Inspirational

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Rashi Saxena

Inspirational

बुआ- भतीजी संवाद

बुआ- भतीजी संवाद

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बुआ बोली भतीजी से- " २० वर्ष पहले तुझसे इस घर में थी मैं आई"

भतीजी बोली बुआ से " पर अब मेरे माता-पिता के मन में मैं ही हूँ समाई"

"मुझसे अपनी बराबरी तू यह क्यों कैसे कर पाई?"

"क्यूंकि मेरे माता पिता ने दिन रात मुझे यही बात जतलाई"

"मेरी माँ ही इस घर में भाभी को बहु बनाकर लायी"

 " संयोगों ने ही मेरे माता-पिता की शादी थी करवायी"

 "क्या बहन के अधिकार छीन ही होगी बेटी के हक़ की भरपाई?"

 " बहन हुई पुरानी अब बेटी ने नयी नीति-रीति चलायी"

दोनों की सुन बहस तभी बहना की भाभी, बन बेटी की माँ वहाँ आयी,                   

 बीच बचाव करने खातिर बेटी को वह तर्कों संग समझायी ।

" तूने अपनी बुआ से यह पहले-बाद की क्या और कैसी होड़ लगाई, "

क्या इन संस्कारों की धरोहर ही तुमने है हमसे पाई?

तेरी दादी ने भरोसा कर घर की सारी जिम्मेदारी है मुझे पकड़ाई,

जो खुद उनने किया जीवन भर,वही भूमिका मैने भी तो सदा निभाई,

बहन-बेटी का दर्जा रहे बराबर घर में , ये बात क्यों न तुझे समझ में आई।

अपने भाई संग तूने खेल कूद पढ़ लिख कर कितनी खुशियां पाई।

फिर क्यों लागे बुआ तुझे दूजी, तेरे पिता भी तो हैं उनके सगे भाई,

पति बहन का हो, या बेटी का, सदा रहेगा इस घर का वह आदरणीय जमाई,

यही बात सासू ने मुझको और मेरी माँ ने भी भाभी को थी एक बार बतलाई,

तुम दोनों का सुन विवाद मैंने वो बात फिर कह कर दोहराई ,

बेटी - बहन के रिश्तों के बदले स्वरुप में करना ऐसा जतन सब भाई 

आज की बेटी, कल की बहन,मायके में न समझने पाए खुद को कभी पराई,

जिन घरों में रहती बहन -बेटी पर सबकी प्रेम-परछाई,

उन परिवारों में विपदा तनिक भी न टिक पाई,

जहाँ हुआ बहन-बेटी में भेद उस घर में घड़ियाँ कष्टों की आईं,  

जग में बहन-बेटियों के आशीषों ने ही घर की सब उलझनें सुलझाई,

बुआ की कर अवहेलना बेटी ने क्यों भाई भतीजों से आस लगाई,

जिस घर मिलता बहन-बेटी को समान प्रेम सम्मान, वहीं बसे साक्षात रघुराई।

वहीं बसे साक्षात रघुराई ।


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