बस कुर्सी की मची लड़ाई है
बस कुर्सी की मची लड़ाई है
भाग रहे दल दल से नेता,
जैसे कोई आफ़त आयी है।
रीति नीति की न कोई चिंता,
बस कुर्सी की मची लड़ाई है।
कल तक देते जिसको गाली,
आज उसकी यारी भायी है।
पद, पैसे की चाहत में देखो,
लोगों ने कैसी ऐंड़ लगायी है।
संग जीने मरने की कसमें वादे ,
सब पर चुनावी धूल उड़ायी है।
न दोस्त कोई, न दुश्मन कोई ,
राजनीति में बड़ी कुर्सी भाई है।।
सब कुछ करने को तैयार खड़े हो,
बनकर जिसके कार्यकर्ता।
बिन पेंदी के लोटा जैसे,
डोल रहा है वह तुम्हारा भर्ता ।
क्या ऐसे पर विश्वास करोगे,
कि वह होगा तुम्हारा दुखहर्ता।
छोड़ो ऐसे मतलबी का संग,
ले जायेगा तुमको केवल गर्ता ।
राह चलो, जो चले साथ में,
वह हो सकता है कल्याण कर्ता।
राजनीति रही न अब सेवा,
हरी हुई अब यह स्व भर्ता।।