बरसात सा प्रेम
बरसात सा प्रेम
इधर होती , उधर होती ये बरसात है
बीच में बस एक हम ही निराश हैं
प्यासी धरती की बेताबी की हालत
बडे़ प्यार से देख तरसाती ये बरसात है।
कर्म में फर्क से फर्ज का भान ना रहा
तर्क में कुतर्क से सतर्कता का भाव ना रहा
जमाने की क्या माने ये तो बेईमान हो रहा
बताओ तुम्हें कैसे किसान का ध्यान ना रहा।
किसी ने पुछा हाल क्या है जनाब आपका
किसान ने कहा बस बाकि है बरसात का बरसना
चर्चा में आई हो तो हाल अपना बताओ बरसात जरा
हम बुरा नहीं मानेंगे कह दो जो भी है कहना।
ओ हल के हाली तेरी मैं सहेली हूं
तुम ना समझ पाओ ऐसी पहेली हूं
मेरे वश में नहीं कि किधर मुझे बरसना हैं
ये तो हठीली हवा की अनोखी कला है।
देखों मेरा ना बरसना आपके प्रेम को पाना है
आज मैं बरसुं तो कल आपका मुझे भूल जाना है
ये प्रेम का अमृत भरा प्याला दिवाना है
जो ज्यादा प्यासा है उसे बाद में पिलाना है।
प्रेममय जीवन को भी संघर्षों ने घेरा है
प्रेम पलों के संग थोड़ी बहुत दूरी होनी है
चार महिने की ये प्रेम प्यार की बरसातें है
इनमें भी थम थम के बरसना बहुत जरुरी है।
कहना ना चार दिनों की बारिश ने भिगोया है
बाकि के दिनों में होना फिर प्यासा है
कहें कि चार दिन की चांदनी और फिर अधेंरी रातें है
कैसे कहें यहां चांदनी रातों में चांद पर बादलों का डेरा है।
इस जीवन में हमें इधर से उधर होना है
ऐसी भाग-दौड़ में हमें किधर जाना है
सब स्वभाव से एक जैसे तो होते नहीं
हो कैसै भी हमें तो राह अपनी जाना है।
ये ऐसे ही जीवन की शुरुआत हैं
आज कल ऐसे ही होते दंगल है
रहता बाकि करने को पश्चाताप है
फिर भी हमें कहते रहना सब मंगल है।