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Meena Mallavarapu

Inspirational

4  

Meena Mallavarapu

Inspirational

बंधन

बंधन

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सफ़र अपने अंतर्मन की गहराइयों तक का

तय कर पाना है मुश्किल -अपने बस के बाहर।

 वजूद हमारे , दुधारी तलवारों के समान

 करते हैं हम पर ही वार  

यह जानते हुए भी कि हम हर मायने में

 हैं अकेले, रहेंगे सदा अकेले

 रिश्तों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं ऐसे

  निकलने की नहीं दिखती कोई राह

  समझौतों के तो हैं केवल मुखौटे

एक म्यान में दो तलवारों के लिए जगह कहां!

   वैसे तो बंधने को इक रिश्ते में

   तड़पे,छटपटाए हर मन

   ज़मीन आसमान को कर दे एक

   ज़िन्दगी को अपनी लगा दे दाव पर

 कर दे न्योछावर अपनी हर ख़ुशी को

   बेखुदी की हदें कर दे पार!

   दुनिया के संकुचित दायरों से दूर

   कुछ पल, बस कुछ ही पल

   एक मयान में दो तलवारों के लिए

   जगह लगती है पर्याप्त

रिश्तों की एक अद्भुत नींव,एक आधारशिला,

   लगती है शाश्वत।

   शामिल हो गए एक म्यान में

   कर लिए वादे जीवन पर्यन्त

   साथ निभाने के

   पर यह क्या! पलक झपकते ही

   उस नींव का, उस आधारशिला के

    खोखलेपन का ,खुल जाता है राज़ !

    कैसी है जीवन की विडम्बना,

    कैसी अजब लाचारी

    कि बंधन में जो थे बंधे अभी अभी

    अब छटपटा रहे हैं, हो रहे हैं आकुल

    पंख फड़फड़ा कर नील गगन मे

    आज़ादी का राग आलापने को!

एक मयान में दो तलवारों के लिए जगह कहां

फिर भी जगह बनाने की कोशिश करते हम

 थकते नहीं। अजब हम इन्सानों की दास्तां !

    एक ऐसी कगार पर है खड़ा हर कोई

    जहां एक ओर बंधन का आलिंगन

    और एक ओर आज़ादी का आव्हान

  एक ओर अहसास मिठास का

    एक ओर घुटन की कड़वाहट

    एक ओर जीत हार की बाज़ी

   एक ओर प्रेम पुलकित मन-और

   एक ओर समझौतों से झुंझलाहट ।

   रिश्तों की इस नींव के क्या कहने!

   है इन का सामंजस्य क्या केवल एक सपना

   या है इस में माधुर्य और परिपूर्णता की

वह अप्रतिम झलक जिसकी है हम सब को आस ,

वह सपना जो हो सकता है शायद कभी परिपूर्ण।



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