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बंदगी

बंदगी

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हाँ मनमोहन कन्हैया हाँ

मैं पिघल जाती हूँ

तुम्हारी बातों से

मिसरी की तरह

पर केशव तू समझता है

मुझ खड़ेे नमक की तरह

तू मुझसे ख़फा है

अभी इस पल बेगानों की तरह

मैं तुझ पर जान लुटाती हूँ 

अपनो की तरह,

पर शायद तू मुझे समझता है

हर पल मुसाफ़िरों की तरह,

फिर भी मेरे कान्हा

मैं तेरे साथ चलूँगी हमसफ़र की तरह

जो प्यार जल चुका है

तेरा मेरे दिल मे बरसों पहले

उसे चलो क्यों न मैं समेट लू

अपने चुनरी में चांदनी की तरह

अब तू चुप न रह मेरे कन्हैया

बोल दे तू मेरा साथ देगा किस तरह ?

मैंने तो तेरा साथ दिया है

ज़िन्दगी की तरह,

बंदगी की तरह ।


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