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Umakant Mehta

Drama

1.4  

Umakant Mehta

Drama

बिसरे स्कूल के सुनहरे दिन

बिसरे स्कूल के सुनहरे दिन

1 min
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एक ही रंग के युनिफार्म पहनकर,

हम लगते थे कितने अच्छे,

स्कूल लगता था मुर्ग़ा घर और,

हम सब मुर्ग़ी के बच्चे ।


मुझको समझ ना आया,

आज तक टीचर का ये फ़ंडा,

हमें बना देती थी मुर्ग़ा और,

ख़ुद कोपी पे देती थी अंडा ।


जब बचपन था,

तो जवानी एक सपना था,

जब जवाँ हुये,

तो बचपन एक ज़माना था ।


जब घर में रहते थे,

आज़ादी अच्छी लगती थी,

आज आज़ादी है,

फिर भी घर जाने की,

जल्दी रहती है ।


स्कुल में जिनके साथ,

झगड़ते थे,

आज उनको ही इन्टरनेट पे,

तलाशते हैं ।


ख़ुशी क़िसमें होती है,

ये पता अब चलता है,

बचपन क्या था,

इसका एहसास अब हुआ है ।


काश बदल सकते हम,

ज़िंदगी के कुछ साल,

काश जी सकते हम,

ज़िन्दगी फिर से एक बार ।


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