बिसरे स्कूल के सुनहरे दिन
बिसरे स्कूल के सुनहरे दिन
एक ही रंग के युनिफार्म पहनकर,
हम लगते थे कितने अच्छे,
स्कूल लगता था मुर्ग़ा घर और,
हम सब मुर्ग़ी के बच्चे ।
मुझको समझ ना आया,
आज तक टीचर का ये फ़ंडा,
हमें बना देती थी मुर्ग़ा और,
ख़ुद कोपी पे देती थी अंडा ।
जब बचपन था,
तो जवानी एक सपना था,
जब जवाँ हुये,
तो बचपन एक ज़माना था ।
जब घर में रहते थे,
आज़ादी अच्छी लगती थी,
आज आज़ादी है,
फिर भी घर जाने की,
जल्दी रहती है ।
स्कुल में जिनके साथ,
झगड़ते थे,
आज उनको ही इन्टरनेट पे,
तलाशते हैं ।
ख़ुशी क़िसमें होती है,
ये पता अब चलता है,
बचपन क्या था,
इसका एहसास अब हुआ है ।
काश बदल सकते हम,
ज़िंदगी के कुछ साल,
काश जी सकते हम,
ज़िन्दगी फिर से एक बार ।