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AVINASH KUMAR

Abstract

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AVINASH KUMAR

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बिना पंखो के भी उड़ान भरी जाय

बिना पंखो के भी उड़ान भरी जाय

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आखिर क्यूँ निराश हुआ जाए

हरपल ही बस खुश रहा जाए

दिन के बाद है आती रात 

बस बदलते मौसम के जज्बात 

आखिर क्यूँ हताश हुआ जाए

समग्र जी के चलो अनुभव ही लिया जाए

कैसे कहूं कि मैं क्या हूँ 

मैं कुछ नहीं बस एक उत्साह हूं 

क्यूँ ना फिर खुद को ही जगाया जाए

आखिर क्यूँ निराश हुआ जाए

करे हरदम हृदय से काम 

भीतर ही है अंतरिक्ष विद्मान

क्यूँ ना भीतर से ही उड़ान भरी जाए

आत्मविश्वास से हृदय को भर लिया जाए

आखिर क्यूँ निराश हुआ जाए

जो होना है होकर रहेगा 

बस कर्मवीर ही कर्म करेगा

आखिर क्यूँ ना कर्मवीर बना जाए

न्यूटन का तीसरा नियम याद किया जाए

क्रिया प्रतिक्रिया जो कहलाए

जो अंतरिक्ष में राकेट उड़ाए

यही नियम जीवन में भी लगाए

कर्म करते रहेंगे अच्छा 

भरोसा रखें लौटेगा दुगुना 

फिर आखिर क्यूँ हताश हुआ जाए

बिना पंखो के भी उड़ान भरी जाय

बड़ी ना सही बौनी ही सही

एक एक कदम आगे बढ़ा जाय

बढ़ते बढ़ते क्या पता एक दिन

मनचाही मंजिल मिल ही जाय



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