बिदाई
बिदाई
तेरे पग बांधने वाले, कर बाँध के खड़े हैं
कड़वी जुबान वाले, मिठास से भरे हैं
हैं शाख्शियत वो आप, पर जानते नहीं
हर शख्स के दिलों में, बस आप हीं बसे हैं
पद का कोई दंभ नहीं, लोगों से रहा वास्ता
मिला कोई जो कष्ट में, दिया सुलभ रास्ता
कोई भी काम हाथ में, नाकाम नहीं आपसे
उम्मीद भरी आँखे,विश्वाश भरे आपसे
हैं शाख्शियत वो आप, पर मानते नहीं
हर शख्स के दिलों में, आप-आप हीं बसे हैं
सब पूछते हैं उनकी, कब है बिदाई पार्टी
जिनकी हुनर के चर्चे,बाज़ार में बड़े हैं
विरह की कल्पना से, मन काँपता है मेरा
जिनकी सख्तियों से, हम आदमी बने हैं
अश्रु भरे नयन से, कैसे करें बिदाई
तेरी शाख्शियत के आगे, हम दंडवत खड़े हैं।