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Dishita Kulshrestha

Tragedy Others

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Dishita Kulshrestha

Tragedy Others

भुखमरी

भुखमरी

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धीमी सी सिसकियां थी गहरा रही,

चक्की को देख मायूसी अपनी सीमा लाँघ रही।

खाने को न दाना था,

बेदर्द वो ज़माना था।

रोटी की भी थी कीमत लगाई, 

उस कचरे में पड़े आखिरी निवाले की याद सताई 

आशाओं का यह बादल भी पराये रास्तों पर उड़ चला। 

जब इस कचरे का अंजाम तय कूड़े वाले के हाथों हुआ 


देह की अन्न से भेंट न हो सकी

और इस रूह को दुत्कार की आदत सी पड़ गई

उदास मुखड़े से अन्न को किया अलविदा 

एक बार फिर खाने की खुशबू से ही पेट भरा 


छह साल की मुन्नी की मासूमियत देख

एक अमीर मियां ने रोटी फेंकी सड़क पर 

मुन्नी की आँखें सितारों सी चमकी 

फटे होंठों से एक मुस्कान छलकी 

मुन्नी ने मुन्ना को बुलाया 

साथ में छोटू भी आया 

मगर किस्मत ने फिर दिखाया जलवा ,

रोटी को तीव्र गाड़ी के पहिये ने बेदर्दी से कुचला 

अगर बात केवल रोटी की होती तो मुन्ना छोड़ देता 

मगर मुन्नी के अचल शरीर को सड़क पर पड़ा देख 

ना जाने क्यों फूट- फूट कर रोने लगा


अस्तित्व न रोटी का रहा 

न मुन्नी का

अपमान अन्न का भी हुआ 

और इंसानियत का भी।


भूख की सत्ता का अंदाजा तो लगाना 

इसे आता है मानव को दानव बनाना

भूख का अहसास उस माँ में है

जो संतान का पोषण बचे-कूचे अनाज से करती है

खुद से पहले,

सम्पूर्ण संसार का पेट भरती है 


जब गरीब, पेट का हिसाब मांगे 

तब भूख मिटाते मिटाते,

इंसान ही मिट जावे 

सरकार को चिंता प्रतिष्ठा की है सता रही 

बाकी भुखमरी का क्या है 

यह कहीं नहीं जा रही 

निर्मम, निर्दयी, निष्ठुर ज़माना 

नेकी न करने का बनाये बहाना 


एक खाना फेंकता है

तो दूसरा उसे चुराता है 

पापी पेट के नाम पर सज़ा कठोर पाता है 

हाय रे विवेक तेरा !

कानून इसीलिए अँधा कहलाता है 

इस विडम्बना को देख तो ईश्वर भी हँसी उड़ाता है। 

      



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