भारत के वीर शहीद ऊधम सिंह
भारत के वीर शहीद ऊधम सिंह
ऊधम जैसा वीर न दुनिया में आएगा दुवारा।
राष्ट्र प्रेम की लहरे उठती टूटे सब्र किनारा।।
अट्ठारह सौ निन्यानवे की छब्बीस दिसंबर आई।
भारत माता नें पाया एक वीर पुत्र सुखदाई।।
तेहाल सिंह सरदार पिता मां थी नारायण कौर।
शेर सिंह अंगना में खेले देख देख मन लेत हिलोर।।
पंजाब के संगरूर के गांव सुनाम को धन्य किया।
बालापन में मात पिता को था ईश्वर नें छीन लिया।।
बने बेसहारा भाई संग शरण अनाथालय मेें पाई।
वही शेर सिंह से ऊधम सिंह बन पहचान थी पाई।।
सन् उन्नीस सौ सत्रह में भाई मुक्ता सिंह छोङ गए।
त्यागा अनाथालय फिर क्रान्ति मार्ग पर निकल गए।।
तेरह अप्रैल को उसी वर्ष जलियाँवाला संहार हुआ।
दुखी विश्व देखा ऊधम उनको न कृत्य यह सहन हुआ।।
तेरह वर्ष के उस बालक नें वध की प्रतिज्ञा कर डाली।
फिर अफ्रीका नैरोबी ब्राजील की छानी गली-गली।।
अमरीका से लंदन जाकर ध्येय हेतु पिस्टल क्रय की।
तेरह मार्च को सभा मध्य ही डायर की हत्या कर दी।।
चार जून सन चालिस को हत्या का दोषी पाकर।
पेंटनविले जेल में उनको गया था डाला लाकर।।
इकतीस जुलाई चालिस को हँसते हँसते बलिदान किया।
पूरण हुआ लक्ष्य उनका जो लक्ष्य उन्होंने ग्रहण किया।।
धन्य वीर हे धन्य तुम्हारे पिता धन्य अरु माई।
धन्य धरा भारत की जहाँ पर कीर्ति तुम्हारी छाई।।