भाई
भाई
सोचा और न लिखूंगा ग़म के फ़साने कभी
बात निकली तो माँ के आंसू याद आ गए
एक दिन तोड़ दूंगा दीवार अपने आँगन की मैं
पकड़ के बाहें बड़े भाई को गले लगा लूँगा
ख्वाब के वो घर नज़र आता है मुझे
जिसमे हमने साथ में बचपन गुज़ारा था
दूर बैठी मान पूरियां ताल रही थी और
बड़े प्यार से तीनो को ही नाम पुकारा था
होड़ होती थी कभी मिठाइयां चुराने की
एक दूसरे से अपने ख़ज़ाने छुपाने की
रात को जाग कर बैठते थे बाते करते थे
साथ एक दूसरे के जाके शु शु करते थे
कभी कोई देर से आए तो रास्ते तकते रहना
खिड़की से देखना दरवाज़े से झाँकते रहना
साथ में खाते थे मगर हर बात पर लड़ते थे
एक दूसरे पर मगर हम जान छिड़कते थे
कपडे एक ही सिलते सभी पहन जाते थे
एक ही साइकिल पर तीनो हक़ जताते थे
हम सदा पास भी रहे और साथ भी रहे
हर खुशियां बाटी और ग़म याद भी रहे
घर बिखरा और घर का मकान हो गया
एक डाल से टुटा बाकी छूटता चला गया
आपस में हम लड़े गैरों को मौका मिल गया
भाई ने साथ छोड़ा तो सभी से धोखा मिल गया।
