बेजुबान पेड़
बेजुबान पेड़
अगर बेजुबान न होते पेड़
तो चिल्लाकर कर देते मौन
कत्ल को समझते है जो तरक्की
स्वार्थी मनुष्य को सुनाते
समाज के लिये भी लड़ते
अपना भी दर्द कहते
तब रोज पेड़ो को काटा न जाता
उनके भी भावों को समझा जाता
मेरी संवेदनाओ को जगा देते
हरे भरे पहाड़ियों को बचा लेते
तब भीषण गर्मी विपदा न बनती
फिर खत्म न होते पोखर तलाब
खत्म न होते वन उपवन
कहते मानव तू कैसा है
कैसा है तेरा जीवन।
