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Vinod Devarkar

Abstract Tragedy

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Vinod Devarkar

Abstract Tragedy

बेईमानी के फूल..

बेईमानी के फूल..

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फूल बेईमानी के क्यों अंधेरों में है खिलते ?

हो ईमान शर्मसार क्यों उजालों के जलते ?


बदनामी अगर दाग़ छोड़ पीछे जाती हैं..

निशां भलाई के कहीं क्यों नहीं मिलते?


माना, बादलों सी भटके रूह मेरी आज भी..

क्यों उड़े हैं अक्स तेरा हर शाम के ढलते?


गुलिस्तां तेरी यादों का छूटा जो पीछे ज़रा..

कटेगा ये सफ़र कैसे वादों के साथ चलते?


यूं ही हंसकर चली कहां ऐ हुस्न ए मलिका

अरमां आज भी रह जायेंगे यूं ही हाथ मलते?


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