बचपन
बचपन
याद आती हैं बचपन की वो शरारतें
खिलंदड़ जिंदगी और बेपरवाह आदतें
ना कोई गम ना उदासी ना कोई चिंता थी
आंखों में रंगीन सपने आसमां छूने की बातें
पैरो में चक्कर और होंठों पे शक्कर होती थी
प्रेम का समंदर वात्सल्य की बरसात होती थी
मासूमियत के रंग में हर रंग घुल जाया करता था
नन्हे मस्तिष्क में कल्पनाओं की उड़ानें जवान होती थी
पढ़ने लिखने खाने पीने खेलने कूदने में समय कटता था
जिंदगी का हर सुख हमारे सिरहाने पर हुआ करता था
कितने अमीर थे तब , बड़ी शाही जिंदगी जिया करते थे
वो अविस्मरणीय अवर्णनीय हमारा बचपन हुआ करता था
श्री हरि
