बचपन से पचपन की अनुभूतियां
बचपन से पचपन की अनुभूतियां
मां कहती है मैं थी नटखट
भोली सूरत तेज़ दिमाग।
कभी शैतानी कभी नादानी।
कभी टट्टीका लेप शरीर पर लगाती,
कभी सुसु करके गढ़ा खोदती।
बिस्तर गीला करती,रातरात
भर बिमारी पे मां को जगाती।
छोटेभाई को कोई प्यार नहीं करना,
सब मुझे लाड़ देना।
यही था दिन-रात का ज़िद मेरा।
मेरे पापा, मेरी मां और को कुछ नहीं कहना।
खाना नहीं खाती थी।
रो-रो के सो जाती थी।
बालपन के अठखेलियां
सबको जितना सताया, मां को सायद दुगुना रुलाया।
अठखेलियां के सारे यादें मां को है ,बताना।