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Sourabh Pathak

Children Drama Inspirational

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Sourabh Pathak

Children Drama Inspirational

बच्चा

बच्चा

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यूँ ही बैठा,

हथेली को ताक रहा था,

लकीरें कम तो नहीं,

ये आँक रहा था।


अगर कम नहीं,

तो वो दौलत कहाँ है ?

वो इज्ज़त, वो शौहरत,

वो मिल्क़त कहाँ है ?


कहीं कोई रेखा,

गलत खिंच गयी क्या ?

या कोना कोई,

बेतुका बन गया क्या ?


बड़ा ध्यान दे के,

बड़े कौतूहल से,

समझने को अपनी,

नसल जा रहा था।


तभी एक बच्चा,

उछलता हुआ सा,

आया कहीं से,

मचलता हुआ सा।


देखी हथेली तो,

कुछ खोद गया,

लिया था कलम,

सो कुछ गोद गया।


हथेली में अब,

लाईनें बढ़ गयीं थीं,

सिरों से सिरों की,

कड़ी जुड़ गयीं थीं।


सवा सेर का था,

सवा शेर निकला,

कटोरे से छोटे,

बड़ा ढेर निकला।


बना ले लक़ीरें या,

चाहे बदल ले,

इतनी सी बात,

ना समझे निठल्ले ?


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