बैरी चाँद
बैरी चाँद
लगता है चाँद हमेशा अपना
हो जैसे वो प्रियतम का मुखड़ा
रोज निहारु उसको मैं तो
उम्मीद लिए मिले संग कभी तो
दूर चमकता चाँद है हंसता
जख्मों पे मेरे है नमक छिड़कता
दूर से ही प्रिये, मुझको तुम देखो
प्रियतम की जैसे बानी कहता
हर बात कहूँ मैं मन की अपने
और चंदा ये सब चुपचाप सुने
ना समझे मनोभावों को मेरे
लगते उसको मेरे सपने ये कोरे
सुकूँ मिले कभी तो मेरे दिल को
पहुँचा दो तुम
भी कुछ बातें प्रियतम को
क्या तुमसे भी नहीं करते बातें वो
कभी तो समझाओ प्रेम मेरा तुम उनको
रोज रात मैं बैठूँ इस आस
आज सफल होगा मेरा प्रयास
संदेशा कोई आयेगा चाँद के साथ
पर मलती रह जाती हूँ मैं खाली हाथ
निकल रही हैं जाने कितनी रात
बैठे रहे चाँद और मैं होने तक उजास
तकती रहती मैं तो आसमान
लगता बैरी मुझको मेरा चाँद।