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Kaushik Dave

Tragedy

4  

Kaushik Dave

Tragedy

" बात एक रात की "

" बात एक रात की "

2 mins
52


जब मैं पहुंचा उस शहर में

आधी रात हो चुकी थी

पता ना मुझे था

वो हुल्लड़ वाली रात थी

ना कोई दिखा मुझे

ना कोई ओटो दिखी

थोड़ा पास में ही जाना था

पैदल में चलने लगा

थोड़ी सी घबराहट

हिम्मत मुझ में कम थी

जैसे ही आगे की गली में गया

किसीने मुझे खिंच लिया

घबराहट से मेरा दिल

धक धक करने लगा

देखा मैंने अपने को

एक अंधेरे कमरे में था

आंखें खिंचकर देखने लगा

मोमबत्ती का थोड़ा सा उजाला था

आंखें ढुंढ रही थी उसे

जिसने मुझे खिंचा था

इतने में आवाज़ आई

बेटा तु आ गया !

पिछले दंगों में गया था

इस हुल्लड़ में ढुंढ लिया

देखकर मुझे आश्चर्य हुआ

एक बुढ़िया को देख लिया

थोड़ी पागल सी दिखती थी

पर मुझे बचा लिया

बोली वो बुढ़िया

गली के मोड़ पर

कातिल बैठे हुए थे

मेरा भूखा बच्चा

कितने दिन बाद

मेरा खाना खायेगा

बड़े चाव से चावल खिलाया

अपनी गोदी में सुलाया

थका हुआ सा मैं

मां की गोदी में सो गया

भोर सुबह होते ही

जाने की अनुमति ले ली

दुसरे साल इस शहर में

जब मैं फिर से आया

ना हुल्लड़ थाना सन्नाटा था

मां के घर पर मिलने आया

देखा मैंने दरवाजे पर

एक ताला लगा हुआ था

बगल के घर में जाकर पुछा

जब बताया पड़ोसी ने

आश्चर्य मुझे तब हुआ

बुढ़िया की मौत के

पांच साल हो गए

बेटे का इंतजार करते

बुढ़िया ने दम तोड दिया

यह सुनकर मेरी आंखें भीग गई

वो मां की याद गोदी में सुलाना

आज भी मुझे याद है

जब भी वो दिन आता

मैं मां की याद में

अनाथ बच्चों को खिलाता हूं

क्योंकि अनाथ बच्चे को

कौन-सी मां इतना प्यार जताती है !


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