" बात एक रात की "
" बात एक रात की "
जब मैं पहुंचा उस शहर में
आधी रात हो चुकी थी
पता ना मुझे था
वो हुल्लड़ वाली रात थी
ना कोई दिखा मुझे
ना कोई ओटो दिखी
थोड़ा पास में ही जाना था
पैदल में चलने लगा
थोड़ी सी घबराहट
हिम्मत मुझ में कम थी
जैसे ही आगे की गली में गया
किसीने मुझे खिंच लिया
घबराहट से मेरा दिल
धक धक करने लगा
देखा मैंने अपने को
एक अंधेरे कमरे में था
आंखें खिंचकर देखने लगा
मोमबत्ती का थोड़ा सा उजाला था
आंखें ढुंढ रही थी उसे
जिसने मुझे खिंचा था
इतने में आवाज़ आई
बेटा तु आ गया !
पिछले दंगों में गया था
इस हुल्लड़ में ढुंढ लिया
देखकर मुझे आश्चर्य हुआ
एक बुढ़िया को देख लिया
थोड़ी पागल सी दिखती थी
पर मुझे बचा लिया
बोली वो बुढ़िया
गली के मोड़ पर
कातिल बैठे हुए थे
मेरा भूखा बच्चा
कितने दिन बाद
मेरा खाना खायेगा
बड़े चाव से चावल खिलाया
अपनी गोदी में सुलाया
थका हुआ सा मैं
मां की गोदी में सो गया
भोर सुबह होते ही
जाने की अनुमति ले ली
दुसरे साल इस शहर में
जब मैं फिर से आया
ना हुल्लड़ थाना सन्नाटा था
मां के घर पर मिलने आया
देखा मैंने दरवाजे पर
एक ताला लगा हुआ था
बगल के घर में जाकर पुछा
जब बताया पड़ोसी ने
आश्चर्य मुझे तब हुआ
बुढ़िया की मौत के
पांच साल हो गए
बेटे का इंतजार करते
बुढ़िया ने दम तोड दिया
यह सुनकर मेरी आंखें भीग गई
वो मां की याद गोदी में सुलाना
आज भी मुझे याद है
जब भी वो दिन आता
मैं मां की याद में
अनाथ बच्चों को खिलाता हूं
क्योंकि अनाथ बच्चे को
कौन-सी मां इतना प्यार जताती है !