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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

बारिश और साथ तुम्हारा

बारिश और साथ तुम्हारा

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ये रिमझिम से मौसम ने सुनी हो गई सारे सड़के,

ये बारिश और साथ तुम्हारा ही चाहूँगी ..

ठंड से जब मुझे लगे कंपकंपी तो ,

तुम मुझे अपने बांहों की चादर से ढंकना चाहूँगी...


ये बारिश की बूंदें भी ये प्यासी धरती को भिंगा रही,

अपने प्रेम की सदा से उसकी प्यास बुझा रही..

तुम भी अपनी प्रेम से मुझे भी सजाओ न

मैं तुम्हारे उस प्रेम से संवरना चाहूँगी 


*

माना कि कुछ खता हमसे हुई तो कुछ तुमसे हुई है

मैं अब सब कुछ भूलना चाहूँगी जो मैंने किया 

फिर से मैं तुम संग यूं जीना चाहूँगी 

मैं-और तुम फिर से एक नए सपने को बुनना चाहूँगी 


मौसम की ये पहली बारिश और तुम्हारे संग भिंगना चाहूँगी 

थाम के तेरा हाथ सदा से भीगी सड़क पे चलना चाहूँगी 

मैं बेफिक्र होकर अब तुझमें ही खोना चाहूँगी 

तुमसे कभी रूठना तो कभी तुझे मनाना चाहूँगी


हमसे जो खुशियों के पल कही खो गए है

उन्हें तुम संग फिर से संयोज कर जीना चाहूँगी


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