बाद मरने के
बाद मरने के
जिंदा थी वो जब पूछा नहीं खाना उसे
बाद मरने के हर साल श्राद्ध किया।
खिलाया खीर पूरी श्रद्धा से
गाय को भी माँ के नाम की।
बाद मरने के हर साल श्राद्ध किया।
आज बनी है कचौरी और जलेबी
तरसती रही खाने को वो अकेली।
बाद मरने के हर साल श्राद्ध किया।
