अतीत के भंवर में
अतीत के भंवर में
अतीत से सीखकर गलतियों के फ़ैसले,
आप को बदलना जरूरी है,
तकलीफों के छालों को देखने के बजाय,
उम्मीदों का मरहम रगड़ना ज़रूरी है।
गफलतों के पन्नों को फाड़कर,
डर को जमीन में 2 गज गाड़ कर,
रहकर परे कुसंगति से स्वयं को,
कटे परों पर भी फड़फड़ाना ज़रूरी है।
क्यों रोते हो बीते हुए लम्हों को याद कर-कर,
गर्द तूफ़ानों से भरी हवाओं में भी देखकर,
इरादों की उठती हुई ज्वाला को भी मत रोको,
सुलगती हुई लौ को भी धड़कना ज़रूरी है।
नादान अपनी नादानियों से खेलेंगे ज़रूर,
अतीत को देख कर अब को बदलेंगे ज़रूर,
जहां चाह है वहां राह भी देंगी तुझे तवज्जो,
बस उसी एक पल के लिए तुझे तड़पना ज़रूरी है।
अंदाज़ -ए- अकबर क्या बतलाऊं तुम्हें,
चीर पानी को क्या खाक लाऊं तुम्हें,
जो कल से नहीं सीख पाए आज तक,
तो क्या उनके लिए बड़बड़ाना ज़रूरी है।