अश्क
अश्क
कभी कभी
मुझे डर लगने लगता है
इस छोटी सी जिंदगानी से
कोई आकर चुरा न ले।
मेरे इन खुशीओं के पलों को
कोई आकर भर न जाये
इसमें ग़मों के प्याले
मुझे तो भा गई है
इसकी चाल रफ़्ता रफ़्ता।
बहुत ही बेताबी के बाद
मिला है कोई
जो भर गया इसे
अपनी ही रंगीनियों से।
अब ये रंग कोई
मेरे पलकों के अश्कों से
चुरा न ले
ये अश्क तो हैं
मेरे सिर्फ मेरे।
क्योंकि ये मुझे
जीने को बेक़रार करते हैं
हाँ ये अश्क हैं मेरी
खुशियों से भरे।
