अशान्त मन और शान्त कलम
अशान्त मन और शान्त कलम
कुछ दिनों से कलम मेरी शान्त है
और मन उतना ही अशान्त है
भारी से जज़्बात हो गए
अल्फाज़ न जाने कहाँ खो गये !
गिरते पड़ते बिखर गए सब
आड़े तिरछे बिगड़ गए सब
अशान्त मन की कोख में जैसे
तोड़ गए दम सारे अक्षर !
अशान्त मन और शान्त कलम
कैसा है ये अनोखा मिलन
शान्त मन और अशान्त कलम
है जीवन का इकलौता संगम !
अशान्त कलम कभी रुक न पाए
शान्त कलम कुछ कह न पाए
अशान्त मन मे कुछ न आये
शान्त मन मे कायनात समाए !
पर कम्पन मेरे हाथों की
अल्फ़ाज़ एक भी लिख न पाएं
सीने में है ग़ुबार भरा
पर पन्नों पे वो किर न पाए !
कैसे कलम अशान्त करूं मैं
मन को कैसे शान्त करूं मैं
कैसे बाँधूं इनका बंधन
कैसे होगा दोंनो का संगम !
मन अशांत कैसे चलेगा
शान्त कलम से क्या निकलेगा
होगा जब दोनों का संगम
रचना ये तब नई रचेगा !!