अर्गलायें टूट जायेंगी।
अर्गलायें टूट जायेंगी।
अर्गलायें टूट जायेंगी।
ये व्यथायें छूट जायेगी।
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पतझड़ों का काल बीतेगा,
कोंपलें फिर फूट जायेंगी।
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किस्मतें इतनी बुरी थोड़े,
जो सदा को रूंठ जायेंगी।
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बदलियां लायेगा न सावन,
गर्मियों को कूट जायेंगी।
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कोकिलों की तान गूंजेगी,
जो दिलों को लूट जायेगी।
