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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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अर्गलायें टूट जायेंगी।

अर्गलायें टूट जायेंगी।

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अर्गलायें टूट जायेंगी।

ये व्यथायें छूट जायेगी।

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पतझड़ों का काल बीतेगा,

कोंपलें फिर फूट जायेंगी।

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किस्मतें इतनी बुरी थोड़े,

जो सदा को रूंठ जायेंगी।

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बदलियां लायेगा न सावन,

गर्मियों को कूट जायेंगी।

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कोकिलों की तान गूंजेगी,

जो दिलों को लूट जायेगी।



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