अपराध
अपराध
भावना को किसी की
आहत करना
चोट उन्हें गहरी
पहुँचाना।
यही हमारी मानवता
जो दिन पर दिन
दोगुनी है बढ़ना,
है पाप जघन्य
अपराध है ये।
क्यूं बर्बरता से
गला घोटना,
बोध अगर
हो जाये
तनिक तो
फिर क्यूंं,
निर्दयता से
प्रहार करना।
रक्त से नही
न बोल जुबां से
ठेस किसी को
पहुंचानी है,
किया गर दुष्कृत्य
जो फिर ऐसा
हत्यारे शब्द का
भार है बढ़ना।
नेकी की राह पर
बढ़ जरा तू
कर ले पैरवी
अपने ईमान की
तू इस दुनिया का
एक फरिश्ता
इंसानियत का है
नाता फिर तेरा।