अपराध बोध
अपराध बोध


क्यूँ होता है तुम्हें हर बात का ही अपराध बोध
क्यूँ करती हो स्वयं तुम अपनी ही हर बात का विरोध l
तो क्या हुआ अगर किसी दिन देर से तेरी नींद खुली ?
नहीं बना पायी अगर तुम नाश्ते में सब्ज़ी कोई l
ब्रेड, उपमा, पोहा, आमलेट, ये भी तो खा सकते हैं सभी
क्यूँ भला इस बात पर चढ़ना पर जाये तुम्हें सूली ?
एक त्रेता की सीता थी, एक आज की नारी है
अंतर कहाँ दोनों में कोई, दोनों में आत्म ग्लानि है।
नहीं सिखाना हमें बेटी को, त्याग की मूरत बनना
जितना माँ को सहते देखा, बेटी को नहीं सहने देना l