अपने में मग्न
अपने में मग्न
दुःख अपनी जगह है,
सुख अपनी जगह है।
दोनों ही आते जाते हैं,
उन्हें बुलाना नहीं पड़ता।
आयेंगे तो जायेंगे भी,
क्रम से आना- जाना है,
अपने आप ही आते हैं,
अपने आप ही जाते हैं।
तुम्हें तो केवल उन्हें देखना है,
उनसे स्वतःनिरपेक्ष रहना है।
वे अपना काम कर रहे हैं,
तुम अपने आनन्द में रहो।
न तुम्हें उन्हें बुलाना है,
न तुम्हें उन्हें भेजना है,
न तुम्हें कुछ पाना है,
न तुम्हें कुछ खोना है।
अपने आत्मानन्द में रहो,
स्थिरचित्त में रहो,
प्राप्त कर्मों को कुशलता से
करते रहो और निस्पृह रहो।
यही ज्ञान का मार्ग है,
यही दुःखों से मुक्ति का मार्ग है,
कुछ बाहर नहीं बदलता है,
अपना मन ही बदलता है।