अनूठी मोहब्बत
अनूठी मोहब्बत
पत्थर की मूरत को अब तक दिल से लगाए बैठे थे
इस दिल में अरमानों का एक दिया जलाए बैठे थे
उनके ही अफ़साने सुनकर हमने सीखा था मुस्काना
उनकी ही तारीफ में हम कुछ गुनगुनाए बैठे थे
एक दौर चला था खुशियों का गम का कहीं नामों निशां भी न था
खुशियों की उस झील में तब हम खुद को डुबाए बैठे थे
रास नहीं आया दुनिया को खुशियों का वो अफसाना
अपने ही कुछ लोग वो हम पर नजर लगाए बैठे थे
नजर लगी जब खुशियों पर तो दिल का कुछ यूँ हाल हुआ
छूट गए वो साजन जिनसे दिल को लगाए बैठे थे
टूटे दिल के दर्द को लेकर जब हम खुदा के पास गए
देखा दिल की राह में कितने झोली फैलाए बैठे थे
खुदा की रहमत से फिर हमने खुद को संभला पाया था
नए सपनों को लेकर फिर हम राह सजाए बैठे थे
बिछड़े साजन के कुछ सपने फिर आँखों में बसा लिए
सपनों की फुलवारी को अपना दामन उड़ाए बैठे थे
फिर आई मिलन की रात जब अपने रखवाले उस साजन से
बुझती हुई उस शमा के संग नई सेज सजाए बैठे थे।

