अनोखा निराला तू
अनोखा निराला तू
अनोखा-निराला तू,
क्यों बेचैन होता,
ये माया जाल हैं,
इस में क्यो खोता,
तू लगा कर गोता,
गहराईयों से मोती लेता,
क्यों घबराता इन कांच के टुकड़े से,
जबकि तू आशीष सदा उस का पता।।
कच्चे रंग तो उड़ते हैं,
तभी तो पक्के चढ़ते हैं,
रंगों का ये फेर समझ जरा,
नव निर्माण कर,
आगे बढ़,
हाथ खोल कर खड़ी हैं शहरत,
एक बार अपने लिए दौड़ कर तो देख,
शेरों की मेहफिल में,
सुनता कौन गिदडों का राग???
तू एक अकेला बुनता
सब के ख्वाब।।
झूठों के गठबंधन को तो,
जनता का भी साथ न मिलता,
सच्चाई की ज्वाला से,
तू नवपथ को चमका,
भले खड़े हो कुछ ही साथ,
ऊपर वाले का हैं तुझ पर हाथ,
चलेगा करवा तेरे साथ।।
