"अनंत सम्भावनायें"
"अनंत सम्भावनायें"
तुम्हें क्या हुआ,
सहमें बैठे हो।
क्या नहीं है, तुम्हारे पास,
अनंत सम्भावनायें समेटे हो।
बूंद-बूंद से, घड़ा भरता है,
पेड़ भी कहां एक दम फलता है।
समझ नहीं आता,
अपनों से क्यों ऐंठे हो।
जब कि तुम,
अनंत सम्भावनायें समेटे हो।
