सोचती हूँ कभी बैठ कर अकेले में कितना बदल जाता है हर रिश्ता एक पल में। सोचती हूँ कभी बैठ कर अकेले में कितना बदल जाता है हर रिश्ता एक पल में।
बूंद-बूंद से, घड़ा भरता है, पेड़ भी कहां एक दम फलता है। बूंद-बूंद से, घड़ा भरता है, पेड़ भी कहां एक दम फलता है।