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अनकही, अनसुनी

अनकही, अनसुनी

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आदाब,
जानती हूँ तुम समझतें हो मोहब्बत को,
पर मुझें पाने के लिए तुम्हें मुझे जीना होगा,

तुम लम्हा हो, बीत जाओगें,
मैं ख़ामोश सदी हूँ, तुम्हें मुझ में से गुज़रना होगा,

मेरे अश्को, हिचकियों और सिसकियों की ज़ानिब,
मेरे दर्द को तुमको पीना होगा,

यूँ तो बहुत फूल खिलते है गुल़शन में हर रोज़,
पर मेरे पतझड़ में तुमको म़हकना होगा,

स़हरा को तलाश है अब्र-ए- मोहब्बत की,
मेरे बंजर दिल पर
तुमको जम कर बरसना होगा,

जो कर सको ये वादा मुझ से महबूब मेरे,
मै दरिया हूँ तुम्हें समंदर होना होगा,,

हाँ, तुम्हे मुझ में से गुज़रना होगा...


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