अंग -भंग
अंग -भंग
भंग ....हाँ हैं मेरे कुछ अंग ,पर फिर भी सबल ,सक्षम हूँ मैं ,
इस आत्मनिर्भर भारत में ,देखो सफल हूँ मैं।
जो लोग मुझ पर हँसते हैं ,उनका थोड़ा ....दिल बहल जाता है ,
और जो सहानुभूति दिखा ,मदद के लिए आगे बढ़ते हैं ,उनका खुद भला हो जाता है ।
कोई आँखों से लाचार ,तो कोई जन्मजात ,बोलने - सुनने से बेकार ,
किसी की एक टाँग चलती नहीं ,तो किसी की दोनो हाथों के ,बिना ही ज़िन्दगी चलती गई।
परंतु फिर भी ....हम सब दिव्यांगों ने ,देखो सीख लिया खुल कर जीना ,
अरे एक अंग ही तो भंग है ,पर बाकी अंगों को तो ,उस ऊपर वाले ने नहीं छीना।।