Praveen Gola

Inspirational

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Praveen Gola

Inspirational

अंग -भंग

अंग -भंग

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भंग ....हाँ हैं मेरे कुछ अंग ,पर फिर भी सबल ,सक्षम हूँ मैं ,

इस आत्मनिर्भर भारत में ,देखो सफल हूँ मैं।

जो लोग मुझ पर हँसते हैं ,उनका थोड़ा ....दिल बहल जाता है ,

और जो सहानुभूति दिखा ,मदद के लिए आगे बढ़ते हैं ,उनका खुद भला हो जाता है ।

कोई आँखों से लाचार ,तो कोई जन्मजात ,बोलने - सुनने से बेकार ,

किसी की एक टाँग चलती नहीं ,तो किसी की दोनो हाथों के ,बिना ही ज़िन्दगी चलती गई।

परंतु फिर भी ....हम सब दिव्यांगों ने ,देखो सीख लिया खुल कर जीना ,

अरे एक अंग ही तो भंग है ,पर बाकी अंगों को तो ,उस ऊपर वाले ने नहीं छीना।।



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